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जनतंत्र का खेल

Udai Shankar ka Hindi Sahitya
Udai Shankar ka Hindi Sahitya
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आओ जनतंत्र का खेलें खेल ।
जन को जन ही रहने दें ,
तंत्र को अपने हाथ में ले लें ।
जन हो बेजुबान,
माने तंत्र को महान ।
जनतंत्र का रहे एक विधान ,
कि जनता करती रहे मतदान ।
जनता है बुधुवा सरीखे ,
क्या जाने जनतंत्र के तरीके ,
बस खुश है एक रोटी खा के ,
और चुल्लू भर पानी पी के ।
आओ जनतंत्र का खेलें खेल,
जिसका एक पक्ष रहेगा अनाड़ी ,
दूसरा होगा नम्बर वन खिलाड़ी ।
खिलाड़ी खेल को आगे बढ़ाएगा ,
अनाड़ी को सपनों के झाड़ पर चढ़ायेगा ।
खिलाड़ियों की अलग-अलग टोली होगी ,
अलग-अलग बोली होगी ,
सबके पास धन भरने की बड़ी-बड़ी झोली होगी ।
आखिर जन तो जन ही रहेगा ,
खिलाड़ियों की ही सुनेगा सहेगा ।
जनतंत्र का खेल जब जब खेला जायेगा ,
जन, खिलाड़ियों की टोली में से ही ,
किसी एक को तंत्र की बागडोर पकड़ाएगा ।

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