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हाय ! ये ज़माना

Udai Shankar ka Hindi Sahitya
Udai Shankar ka Hindi Sahitya
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नज़्म अब इश्क की नहीं बनती,

निशाना बन गई वो वहसत का ।

शाम अब सुरमई नहीं लगती,

नज़ारा हर तरफ है दहसत का । ।


प्यार के बोल अब कोई क्या बोले,

सिला मिलना है उसको तल्खी का ।

तल्ख बातें वो कह नहीं सकता,

चुनांचे रस्ता चुना है गुमशुमकी का । ।


अब तो खुल कर गले नहीं मिलते,

सबको खटका लगा प्रापर्टी का ।

बाप हो याके भाई-बहन या बीवी हो,

एक-दूजे पे एतबार नहीं, अब तो चस्का लगा अमीरी का । ।


रातें अब चैन से नहीं कटतीं,

क्यूंकी तिकड़में हैं फलसफा ज़माने का ।

मेहनतकसी की ज़िंदगी हराम लगे,

जबसे लूट है ज़रिया बना कमाने का । ।


फ़क्त मुफ़लिसी ही कारन था,

उनका मुझसे दूर जाने का ।

लौट के अब तो आ जाओ,

मैं भी मालिक बना खज़ाने का । ।

उदय शंकर श्रीवास्तव
कटरा बाज़ार, गोंडा (उ.प्र.)
9716027886

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