Udai Shankar ka Hindi Sahitya
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नज़्म अब इश्क की नहीं बनती,
निशाना बन गई वो वहसत का ।
शाम अब सुरमई नहीं लगती,
नज़ारा हर तरफ है दहसत का । ।
प्यार के बोल अब कोई क्या बोले,
सिला मिलना है उसको तल्खी का ।
तल्ख बातें वो कह नहीं सकता,
चुनांचे रस्ता चुना है गुमशुमकी का । ।
अब तो खुल कर गले नहीं मिलते,
सबको खटका लगा प्रापर्टी का ।
बाप हो याके भाई-बहन या बीवी हो,
एक-दूजे पे एतबार नहीं, अब तो चस्का लगा अमीरी का । ।
रातें अब चैन से नहीं कटतीं,
क्यूंकी तिकड़में हैं फलसफा ज़माने का ।
मेहनतकसी की ज़िंदगी हराम लगे,
जबसे लूट है ज़रिया बना कमाने का । ।
फ़क्त मुफ़लिसी ही कारन था,
उनका मुझसे दूर जाने का ।
लौट के अब तो आ जाओ,
मैं भी मालिक बना खज़ाने का । ।
उदय शंकर श्रीवास्तव
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