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सपने में भारत एक सर्कस नजर आया था ।
इसीलिए गोरों नें संसद को पिंजरे सा बनाया था ।
सर्कस पंडाल सा है सारा यह देश बड़ा ।
सर्कस के रिंग जैसा संसद का पिंजरा है खड़ा ।
पिंजरे की हर हरकत।
कुर्सी की उठा पटक ।
रिंगमास्टर की डपट ।
खरबों की राशि यहाँ मिनटों में सफाचट ।
नागरिक इस देश के सब दर्शक बेचारे हैं ।
कौतूहल भरी आँखों से बस पिंजरा निहारे हैं ।
हाथी और शेर जैसे दिग्गज अब गायब हैं ।
लोमड़ी, सियार और भेड़िये ही उनके अब नायब हैं ।
जोकरों की संख्या भी इनमें नहीं हैं कम ।
स्टंटमैन अपने स्टंट से दिखाते दम ।
कोई रुपया गिराता है ।
दानव मंहगाई का कोई कंधे पर बिठाता है ।
ताबूत कोई खाता है ।
कोई कोयला पचाता है ।
जोकर भी अपने सब करतब दिखाते हैं ।
लड़ने और भिड़ने का खेल सब दिखाते हैं ।
सूचना ना देनी पड़े तो साथ नजर आते हैं ।
न्यायोचित फैसलों की धज्जियाँ उड़ाते हैं ।
रंगे हुए मुंह से वह न्याय को चिढ़ाते हैं ।
बहुरूपिये का स्वांग भी खूब ये रचाते हैं ।
रामनामी लटकाते हैं ।
गोल टोपी भी लगाते हैं ।
संबिधान का खेल बड़े ज़ोरों से जारी है ।
संशोधन की तलवार यहाँ चलती दुधारी है ।
चीख़ नहीं पाती है सांस अभी जारी है,
क्योंकी संबिधान की आत्मा तो गूंगी बेचारी है ।
उदय शंकर श्रीवास्तव
कटरा बाजार, गोंडा (उ.प्र)
9716027886
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