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संसद का सर्कस

Udai Shankar ka Hindi Sahitya
Udai Shankar ka Hindi Sahitya
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सपने में भारत एक सर्कस नजर आया था ।

इसीलिए गोरों नें संसद को पिंजरे सा बनाया था ।

सर्कस पंडाल सा है सारा यह देश बड़ा ।

सर्कस के रिंग जैसा संसद का पिंजरा है खड़ा ।

पिंजरे की हर हरकत।

कुर्सी की उठा पटक ।

रिंगमास्टर की डपट ।

खरबों की राशि यहाँ मिनटों में सफाचट ।

नागरिक इस देश के सब दर्शक बेचारे हैं ।

कौतूहल भरी आँखों से बस पिंजरा निहारे हैं ।

हाथी और शेर जैसे दिग्गज अब गायब हैं ।

लोमड़ी, सियार और भेड़िये ही उनके अब नायब हैं ।

जोकरों की संख्या भी इनमें नहीं हैं कम ।

स्टंटमैन अपने स्टंट से दिखाते दम ।

कोई रुपया गिराता है ।

दानव मंहगाई का कोई कंधे पर बिठाता है ।

ताबूत कोई खाता है ।

कोई कोयला पचाता है ।

जोकर भी अपने सब करतब दिखाते हैं ।

लड़ने और भिड़ने का खेल सब दिखाते हैं ।

सूचना ना देनी पड़े तो साथ नजर आते हैं ।

न्यायोचित फैसलों की धज्जियाँ उड़ाते हैं  ।

रंगे हुए मुंह से वह न्याय को चिढ़ाते हैं ।

बहुरूपिये का स्वांग भी खूब ये रचाते हैं ।

रामनामी लटकाते हैं ।

गोल टोपी भी लगाते हैं ।

संबिधान का खेल बड़े ज़ोरों से जारी है ।

संशोधन की तलवार यहाँ चलती दुधारी है ।

चीख़ नहीं पाती है सांस अभी जारी है,

क्योंकी संबिधान की आत्मा तो गूंगी बेचारी है ।

उदय  शंकर  श्रीवास्तव

कटरा बाजार, गोंडा (उ.प्र)

9716027886

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