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त्रासदी

Udai Shankar ka Hindi Sahitya
Udai Shankar ka Hindi Sahitya
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/ त्रासदी यदि हो भयंकर बस प्रकृति को ही कोसते हैं /
अन्न, पानी, प्राण, वायु,
वह सभी को बांटती है /
पालती सदियों से आई यह नहीं हम सोंचते हैं /
/ त्रासदी यदि हो भयंकर बस प्रकृति को ही कोसते हैं /
नियति से हारी बेचारी क्या करेगी,
घाव इतने खा लिए कैसे भरेगी /
प्यार से रक्खें प्रकृति को, क्यों नहीं हम सोंचते हैं /
/ त्रासदी यदि हो भयंकर बस प्रकृति को ही कोसते हैं /
हैं बढ़ाते जा रहे साधन सुखों के,
हम विलासित हो गए हैं /
ऊर्जा अपनी बचा कर बस प्रकृति को ही दोहते हैं /
/ त्रासदी यदि हो भयंकर बस प्रकृति को ही कोसते हैं /
पल सकें सदियों सभी जन,
भंडार यूँ भर कर रखे थे /
उस भरे भण्डार को हम सब अनर्थक फेंकते हैं /
/ त्रासदी यदि हो भयंकर बस प्रकृति को ही कोसते हैं /
जान कर भी ध्यान हम देते नहीं /
आपदाएं हो रहीं, सीख हम लेते नहीं /
हम स्वयं को मृत्यु के आगोश में क्यों झोंकते हैं /
/ त्रासदी यदि हो भयंकर बस प्रकृति को ही कोसते हैं /
प्रकृति को यदि दोष देंगें, तो उसे संताप होगा /
पालती आई हमें, उसके प्रति एक पाप होगा /
प्रकृति के प्रति हो रहे अन्याय को हम क्यों नहीं अब रोकते हैं /
/ त्रासदी यदि हो भयंकर बस प्रकृति ही कोसते हैं /

उदय शंकर श्रीवास्तव
कटरा बाज़ार, गोंडा
(उ.प्र) २७१५०३
मो: ९७१६०२७८८६

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