Udai Shankar ka Hindi Sahitya
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प्रकाशमय हो उठा था सारा परिवेश ,
खुशियों में मग्न था अपना यह देश .
झालरों की जगर-मगर ,
रंगीली आभा में थे सरे घर तर-बतर .
इसी बीच एक हूक उठी थी मगर ,
दरिंदी बसों में तो अब भी अँधेरा है ,
मिलों के खंडहरों में ज़ालिमों का डेरा है ,
आस्था की कुटिया में तो ढोंगी लुटेरा है .
तिमिर ग्रसित कोनों से चीखें जब आती हैं ,
जग-मग की आभा सब फीकी पड़ जाती है .
अब इस दीपोत्सव को भूल नहीं जाना है ,
इसे सार्थक बनाना है ,
तिमिर को भगाना है .
दरिंदगी की हर सय को दीपक दिखाना है ,
तिमिर को भगाना है .
ढोंगी की कुटिया में दीपक जलाना है .
कलुषित जो अंतर्मन उनको जगाना है ,
ऐसा एक दीपक अब हर दिन जलाना है .
(उदय शंकर श्रीवास्तव)
कटरा बाज़ार , गोंडा
उ.प्र. २७१५०३
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