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जंग लगी व्यवस्था को यदि साफ करके चमकाना है तो कुछ किरचें तो हाथ में चुभेंगी ही । ‘आप’ पार्टी से कुछ अभूतपूर्व कर दिखाने की आशा में आम जनमानस आंदोलित हुआ । ‘आप’ सत्ता में आई । पहले दिन से ही लीक से हट कर काम करना प्रारम्भ भी हो गया । जब भ्रष्टाचार मिटाने के , सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने के , सस्ती और अच्छी शिक्षा देने के , महंगाई से जूझने और आम आदमी के हर दुख दर्द दूर करने के वादे ‘आप’ पार्टी कर रही थी तो यह प्रश्न उठता था कि यह सब कैसे होगा ? क्या कोई जादू की छड़ी है जो चलायेंगे ? सत्ता में आने के बाद ‘आप’ ने यह तो दिखा दिया कि नहीं जादू कि छड़ी तो नहीं है मगर वे वह सारी आशाएँ पूरी करने की क्षमता रखते हैं । उन्हें सहूलियत की राजनीति छोड़ कर जकड़ी हुई व्यवस्था से जूझना पड़ रहा है । सत्ता मिलने के बाद यदि वह चाहते तो चल रही व्यवस्था के साथ तालमेल बिठा कर सुखद राजनीति की राह पर चल सकते थे । मगर यदि यही होता तो फिर व्यवस्था में किसी अमूलचूल परिवर्तन की आशा तो समाप्त हो ही जाती ।
बिजली कंपनियों की मनमानी , नर्सरी एड्मिशन , एवं पुलिस कार्यप्रणाली जैसे मामलों में त्वरित निर्णय लेना मधुमक्खी के छत्ते में उंगली करने जैसा है । सहूलियत की कार्यप्रणाली पर न चल कर क्या होता है यह सभी ने खिड़की एक्सटैन्शन मामले में देखा है । सहूलियत की सत्ता आराम से चलती रहती यदि अपराध की सूचना मिलने पर गरम कमरे में ही बैठे हुए मंत्री जी पुलिस कमिश्नर को फोन कर देते । कमिश्नर साहब एसीपी को और एसीपी एसएचओ को । यह तय था कि पुरानी व्यवस्था में एसएचओ भी गरम कमरे से बाहर न निकलते । वह सिपाही भेज देते । सिपाही वहाँ क्या करता यह हम सभी जानते हैं । फिर उसी प्रापर चैनल से रिपोर्ट भी मंत्री जी को दे दी जाती । कोई हो हल्ला होने से कह देते कानून अपना काम कर रहा है । मगर शासन की नई कार्यशैली ने एसएचओ साहब को ठंड में बाहर निकलने पर मजबूर किया तो जाहिर है कि क्यों वो कानूनी अड़चनों के बहाने मंत्री जी को भी जलील करने से पीछे नहीं रहे । यह वही पुलिस अफसर हैं जो सहूलियत हो तो कानून ताक पर रख कर फर्जी एनकाउंटर करने में भी पीछे नहीं रहते हैं । व्यवस्था के प्राविधान इतने असहाय भी नहीं हैं कि सामने अपराध हो रहा हो और पुलिस कुछ न कर सके । अगर पुलिस तंत्र अपराध के प्रति संवेदनशील होता तो कानून के दायरे में रहते हुए ही फौरी तौर पर कार्यवाही सुनिश्चित हो सकती थी । घर को कोर्डन करके तुरंत महिला पुलिस बुलाई जा सकती थी । मैजिस्ट्रेट के आवास से सर्च वारंट लेने के प्राविधान हैं । मगर जब इच्छाशक्ति ही नहीं थी तो रास्ते कैसे निकलते । यहाँ तो मामला ही उल्टा था । पुलिस हर हाल में यह सिद्ध करना चाहती थी कि अपराध देख कर भी कोई फौरी कार्यवाही नहीं की जा सकती है । उस घटना के दौरान अफरातफरी पुलिस की निष्क्रियता के कारण मची । हो रहे अपराध के प्रमाण भी इकठ्ठा नहीं हो सके । मंत्री और कुछ लोगों के द्वारा जो अनियमिततायेँ हो गयी वह न होती अगर पुलिस प्रभावी कार्यवाही करती हुई दिखती । अब उन्ही अनियमितताओं के आधार पर मंत्री और अन्य लोगों पर सिकंजा कसा जा रहा है ।
उस घटना के विस्तृत विश्लेषण से यह दिखता है कि कैसे प्रभावी एवं नई कार्यशैली को हतोत्साहित किया जाता है । एक गाँव में खुला साँड घूम रहा है । जब तक उसको नकेल डालने की कोशिश नहीं की जाएगी तो वह आराम से सबके खेत चरता रहेगा । मगर नकेल डालने की कोशिश करने पर काफी हो हल्ला होगा , किसी को चोट भी लग सकती है । शांत गाँव में हलचल मच जाएगी । कहने वाले लोग खड़े हो जाएंगे की क्या जरूरत थी थोड़ा बहुत चर लेता था मगर शांति तो थी । इसी प्रकार जमीन पर समस्याओं से जूझते हुए कार्य करने की नई संस्कृति यदि आगे बढ़ती है तो विरोधी शक्तियाँ इसे अपने हथकंडों से निष्क्रिये बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे ।
‘आप’ ने इतने कम समय में घूसखोरी , पानी , बिजली आडिट एवं नर्सरी एड्मिशन इत्यादि के क्षेत्र में इतने अभूतपूर्व कदम उठाए हैं जो कई सरकारें सालों में न कर पाते । यहाँ हम सभी को यह समझना होगा कि अगर हम सभी समाज में किसी ऐतिहासिक परिवर्तन की आशा लगाए बैठे हैं तो हमें यह मान कर चलना पड़ेगा कि पटरी पर चल रही हमारी गाड़ी में भी कुछ हिचकोले तो लगेंगे ही । रेल भवन के पास धरने के दौरान मेट्रो एवं ट्रैफिक की सहूलियत में जरा सी दिक्कत आते ही , बिजली कंपनियों के बिजली कटौती की धमकी मिलते ही आम आदमी ने ही कोसना सुरू कर दिया जिसकी यह लड़ाई है । वयवस्था परिवर्तन की इस लड़ाई में कई ऐसे मौके आएंगे जब हमे भी सुधरना पड़ेगा , कुछ असुविधा झेलनी पड़ेगी या लीक से हट कर काम करने की आदत डालनी पड़ेगी ।
यहाँ यह भी उल्लेखनिए है की अगर ‘आप’ संकीर्ण और व्यक्तिवादी राजनीति करती हुई पाई गई तो यह बड़ा घातक होगा । सच्ची एवं नई राजनीति की आशा लगाए बैठी जनता निराश हो जाएगी और भ्रष्ट व्यवस्था से समझौता कर लेगी । बिन्नी जी की बगावत को तो लोगों ने बहुत गंभीरता से नहीं लिया परंतु अब पार्टी की संस्थापक सदस्य मधु भादुडी जी के आरोपों ने पार्टी के कार्यप्रणाली पर प्रश्न खड़े कर दिये हैं ।
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