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काश तुम ये समझ पाते

Udai Shankar ka Hindi Sahitya
Udai Shankar ka Hindi Sahitya
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शरद के इन शीत झोंकों ने मुझे है फिर सताया ।
साथ में अपनी पवन यह याद तेरी है जो लाया ।।
रात्रि की इस कालिमा में चाँद जैसे हो चिढ़ाता ।
आज क्यों तकते ? प्रिये था तब, तब नहीं था मैं सुहाता ।।
आ सघन काली घटाएँ, हैं गगन पर छा गई यूं ।
तेरी तरह ही चाँद भी, आँखें चुराना चाहता ज्यू ।।
मन आ, स्वयं में खोज, मन की शांति अब ।
स्वयं में भी नहीं था तू, था पास में तेरा प्रिये जब ।।
स्वयं की इस मार से आहत हुआ मन ।
और तेरी याद में जलने लगा मेरा विकल तन ।।
जानता हूँ यह जलाएगा मुझे, मेरा कुटिल तन ।
मैं स्वयं तन में नहीं था, तू मिली थी मुझे जिस क्षन ।।
हाय ! मेरे उस मिलन का, आज सब बदला चुकाते ।
आज मुझसे सभी रूठे, काश काश तुम ये समझ पाते ।।

(उदय शंकर श्रीवास्तव)
कटरा बाजार, गोंडा
उ. प्र. 271503

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