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देवभूमि में, देवों का ये कैसा रूप था ?

Udai Shankar ka Hindi Sahitya
Udai Shankar ka Hindi Sahitya
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देवभूमि में, देवों का ये कैसा रूप था ?
वेदना ही वेदना, चारो तरफ बिखरा हुआ विद्रूप था ।
चीख क्रंदन भी वही सब कर सके ।
सैलाब की उस क्रूरता से जो बच सके ।
पोथियों के प्रलय वर्णन सा वहाँ सब हो रहा था,
बादलों की गर्जना और पत्थरों के रोर में,
जो जहां था होश अपने खो रहा था ।
चीख भी तो हर कोई पाया नहीं ।
श्वास घुट कर रह गई होश फिर आया नहीं ।
संहार का वीभत्स वह तांडव चला,
जीवित बचें इसका नहीं मौका मिला,
मृत्यु की वीभत्सता को कुछ पलों तक झेल कर,
लाशों सने कीचड़ में दब कर रह गया ।
डूबता कोई, कोई बचाता था किसी को,
दुधमुहें को अपनी तरफ यूं खींच कर,
माँ वो मानों मृत्यु से ही लड़ रही हो ।
धर्मभीरु थे सभी, जानते थे प्रलय आएगी कभी,
स्वप्न में भी बात यह सोंची नहीं,
वह समय आ जायेगा यूं ही अभी ।
त्रासदी वीभत्स होती है जब कभी,
नियति की फिर बात होती है तभी,
नियति सुखमय रूप तब दिखलायेगा,
प्रकृति से खिलवाड़ जब रुक जायेगा ।
(उदय शंकर श्रीवास्तव)
कटरा बाजार, गोंडा
उ. प्र. 271503
मो:08126832288

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