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पिछले कुछ दिनो से आमिर के दिये बयान पर बहस छिड़ी हुई है । कुछ लोग उनका समर्थन कर रहे हैं तो कुछ विरोध । बयान का विरोध एवं समर्थन करने वाले अनेक प्रकार के तर्क दे रहे हैं । सभी अपने ढंग से अपनी बात कह रहे हैं । कौन सही है कौन गलत यह यहाँ विचार का विषय नहीं है । विषय यह है कि अपनी भावना व्यक्त करने का अधिकार सबको मिलना चाहिए या नहीं ।
ममता जी ने कहा… ” आमिर खान ने जो महसूस किया वह कहा । वह उनका लोकतांत्रिक अधिकार है ” । इसी प्रकार के अनेकों बयान उनके समर्थन में आये । मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस हरीपरनथनम ने भी कहा… ” आमिर का अपनी पत्नी के साथ हुई बातचीत को सबके सामने रखने में कोई बुराई नहीं है । अभिनेता ने अपनी स्तब्धता और आश्चर्य जाहिर किया है ” । साथ ही समर्थन में बोल रहे लोग विरोध के स्वर को कुत्सित एवं असहिष्णु सिद्ध करने से भी बाज नहीं आ रहे ।
आमिर ने एक बड़े मंच से जो बात कही वह उनके व्यक्तिगत दायरे में सीमित बात नहीं थी । उनकी बात से उन करोड़ों लोगों ने अपने को जुड़ा महसूस किया जो जाति धर्म से ऊपर उठ कर गंगा जमुनी संस्कृत मेँ रह रहे हैं, उसमें अपना योगदान दे रहे हैं और यह मानने को तयार नहीं कि ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि किसी को देश छोड़ कर जाने पर मजबूर होना पड़े । आमिर का बयान ऐसे लोगों को गाली जैसा चुभी है ।
यहाँ मुद्दा यह है कि यदि यह कहा जा रहा है कि आमिर ने जो महसूस किया वह कहा और वह उनका लोकतांत्रिक अधिकार है तो फिर उन्हें भी क्यों कोसा जा रहा है जिन्होंने आमिर के बयान से जो महसूस किया वह कह रहे हैं । इसे भी उनका लोकतांत्रिक अधिकार मान कर वैसा ही सम्मान देना चाहिये जैसा आमिर के बयान को कुछ लोग दे रहे हैं ।
दोनों ही पक्ष मर्यादित भाषा में अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करें तो कोई बुराई नहीं । देश के लोग परिपक्व हैं और वे स्वयं निर्णय लेंगे कि किस पक्ष की बात में कितनी सत्यता है ।
(उदय शंकर श्रीवास्तव)
कटरा बाजार, गोंडा
उ.प्र. 271503
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